Sunday, March 29, 2020

वास्तु शास्त्र मकान बनाने से पहले, इनका भी ध्यान रखें

किसी भी भवन, गृह, निवेश आदि में शुभत्व नियोजन की तुलना में अशुभत्व को रोक देना अधिक श्रेयस्कर होता है। एक भी दोष अनेक शुभ गुणों से युक्त भवन को दूषित कर अशुभकारी बना देता है। इसी कारण भवन निर्माण के संदर्भ में नकारात्मक नियोजन से बचाव भी उपलब्धि कारक होता है। दोष निवारण से निर्दोषता बढ़ती है। यहां पर इसी बात का विचार किया जा रहा है कि एक भवन के आंरभ से अन्तिम निर्माण तक-किन चीजों से बचना चाहिए।

– अग्निकोण में मकान की भूमि का ढलाव अग्निभय को उत्पन्न करता है। दक्षिण दिशा में ढलाव युक्त मकान मृत्युकारक होता है। इसी प्रकार वायव्य कोण में ढालती भूमि कलह, प्रवास और रोगकारी होती है। नैऋत्य कोण में ढ़ालू भूमि रोगकारी होती है। पूर्व दिशा में ठालू मकान, धन-धान्य को हानि पहुंचाने वाला होता है।

– जिस मकान का जल चारों तरफ से ढलक कर बीच (ब्रह्मस्थान) की ओर आये अर्थात् मध्यप्वला भूमि हो, वह सर्वनाशक होती है।

– हड्डी, अंगार, भस्म तथा शंख से युक्त भूमि तथा उर्वर भूमि मकान बनाने के लिए अशुभ मानी जाती है।

– चैत्र में मकान बनाने से शोक, ज्येष्ठ में मकान बनाने से मृत्यु, आषाढ़ में मकान बनाने से पशुनाश, भाद्रपद में शून्यता, आश्विन में कलह, कार्तिक में नौकर का नाश तथा माघ से गृह-निर्माण से अग्नि का भय बना रहता है, अत: इन महीनों में मकान बनाने का कार्य नहीं करना चाहिए।

– पूर्व-पश्चिम कोण जिस मकान का स्पष्ट न हो और माप से टेढ़ा-मेढ़ा हो तो इसे दिग्मूढ़ दोष कहा जाता है। ऐसा भवन स्त्री विनाशक होता है।

– उत्तर दिक् (दिशा) का भ्रष्ट होना सर्वनाशक होता है तथा दक्षिण दिक् की मूढ़ता मृत्युकारक होती है।

– जिस मकान का मुख्यद्वार निकला हुआ होता है, वह वलित कहलाता है। जिसका पिछवाड़ा निकला हुआ होता है तो वह चलित कहलाता है। जिस मकान में दिशा ही स्पष्ट न हो तो वह दिग्मूढ़ या भ्रान्त कहलाता है। कर्णहीन मकान विसूत्र कहलाता है। इन दोषों से बचना चाहिए।

– सर्पाकार, बाम्बीयुक्त तथा चूहों के बिलों से युक्त भूमि मकान के लिए शुभ नहीं होती।

– जिस भवन के कमरे बरामदा युक्त नहीं होते, उसे शुभ नहीं माना जाता। भवन के पृष्ठ भाग में किसी दूसरे मकान का मुख्य द्वार ठीक नहीं होता। मार्गवेध वाला भवन अशुभ माना जाता है।

– मकान के मध्य में द्वार नहीं होना चाहिए। भित्ति के मध्य में स्थित द्वार अशुभ होता है। द्वार के सामने द्वार नहीं होना चाहिए। अशुभ एवं खतरनाक चित्र भित्तियों पर अंकित नहीं करने चाहिए।

– भवन पर वृक्ष की छाया या दूसरे भवन की छाया को शुभ नहीं माना जाता है। अशुभ वृक्षों की लकड़ी का प्रयोग घर में नहीं करना चाहिए। मकान के अहाते में बेर का पेड़, अनार का पेड़, नींबू का पेड़ तथा केले के पेड़ को नहीं लगाना चाहिए।

– स्वयं खुलने वाला दरवाजा उच्चाटन देता है इसी प्रकार स्वयं बन्द होने वाला दरवाजा बहुत दु:ख देने वाला होता है।

– एक मकान के ऊपर बनाये गये कमरे नीचे के कमरे के समान माप के नहीं होने चाहिए। ऊपरी तल वाला कमरा नीचे के कमरे से थोड़ा ही परन्तु छोटा होना चाहिए।

– कमरों से अधिक बरामदों का होना भी अशुभ माना जाता है। मुख्य द्वार के सामने पानी का रिसाव, देवालय एवं कूप अशुभ माने जाते हैं। मुख्य द्वार से थोड़ा हटा हुआ कूप धनवृद्धि कारक माना जाता है।

– भवन के मुख्य द्वार के दोनों ओर स्वस्तिक का चिन्ह बना देने से घर के अन्दर अशुभ ग्रहों तथा अशुभकारक तत्वों का प्रवेश नहीं हो पाता। स्वस्तिक का निर्माण किसी योग्य पुरोहित द्वारा ही कराना चाहिए।

– रविवार एवं मंगलवार को मकान की नींव का मूहुर्त्त नहीं करना चाहिए। मेष, कर्क, तुला, एवं मकर, इन चार लग्नों के समय की अवधि में गृह निर्माण का कार्य प्रारम्भ नहीं करना चाहिए।

– अगर कुछ नक्षत्र जैसे हस्त, पुष्य, रेवती, मघा, पूर्वाषाढ़ा , मंगलयुक्त हो तो उस दिन गृहारम्भ नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे मकान अग्निभय, चोरी एवं पुत्र को कष्ट देने वाले होते हैं।

– अगर किसी भूखण्ड के पूर्व एवं उत्तर की अपेक्षा दक्षिण पश्चिम में स्थान छोड़ा गया हो तो वह एक त्रुटिपूर्ण निर्माण माना जाता है। नये निर्माण में दरवाजे दक्षिण की ओर नहीं रखने चाहिए।

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