Monday, March 30, 2020

समझें क्या है वेंटिलेटर, कोरोना रोगियों के लिए ये क्यों जरूरी है

महिंद्रा ग्रुप के मालिक आनंद महिंद्रा ने 26 मार्च को घोषणा की कि उनकी कंपनी मात्र साढ़े सात हजार रुपए में वेंटिलेटर बनाएगी. ये औचक घोषणा आनंद महिंद्रा ने देश में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच की. औम तौर पर वेंटिलेटर की कीमत 10 लाख रुपए के आस-पास होती है. दरअसल कोरोना के मरीजों की जब तबीयत ज्यादा बिगड़ती है तब उन्हें वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ती है.

इससे पहले चीन, इटली और अमेरिका से ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि मामले बढ़ने के साथ वेंटिलेटर की कमी पड़ गई. भारत में 24 मार्च से 15 अप्रैल तक देशव्यापी लॉकडाउन घोषित है. अब तक कोरोना के मरीजों की संख्या 1300 के आंकड़े के करीब पहुंच चुकी है. आइए जानते हैं कि वेंटिलेटर की मशीन किसी कोरोना रोगी के लिए क्यों जरूरी है और ये कैसे काम करती है…

क्या है वेंटिलेटर
अगर आसान भाषा में समझें तो जब किसी मरीज के श्वसन तंत्र में इतनी ताकत नहीं रह जाती कि वो खुद से सांस ले सके तो उसे वेंटलेटर की आवश्यकता पड़ती है. सामान्य तौर पर वेंटिलेटर दो तरह के होते हैं. पहला मैकेनिकल वेंटिलेटर और दूसरा नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर. अस्पतालों में हम जो वेंटिलेटर आईसीयू में देखते हैं वो सामान्य तौर पर मैकेनिकल वेंटिलेटर होता है जो एक ट्यूब के जरिए श्वसन नली से जोड़ दिया जाता है. ये वेंटिलेटर इंसान के फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. साथ ही ये शरीर से कॉर्बन डाइ ऑक्साइड को बाहर निकालता है. वहीं दूसरे तरह का नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर श्वसन नली से नहीं जोड़ा जाता. इसमें मुंह और नाक को कवर करके ऑक्सीजन फेफड़ों तक पहुंचाता है.

क्यों पड़ती है कोरोना मरीज को इसकी जरूरत
कोरोना वायरस ड्रॉपलेट के जरिए इंसानी शरीर में पहुंचता है. शुरुआती चरण में इसका असर गले में दर्द और खरास के तौर पर होता है. तेज बुखार के साथ निमोनिया के लक्षण उभरना शुरू होते हैं. फिर से फेफड़ों को निष्क्रिय करना शुरू करता है. जिस इंसान की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है उसे वेंटिलेटर की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन उम्रदराज या पहले से गंभीर रोग से पीड़ित लोगों में इसी वक्त वेंटिलेटर की जरूरत होती है. कोरोना के मामलों में गंभीर संक्रमण का प्रतिशत कम है लेकिन इसके तेज फैलाव की वजह से ये उम्रदराज या बीमार लोगों में ज्यादा मुश्किलें खड़ी करता है.

क्यों है वेंटिलेटर्स की कमी
वेंटिलेटर का उपयोग सामान्य तौर गंभीर स्थिति में ही किया जाता है. विकसित देशों में भी वेंटिलेटर एक अनूपात में ही रहते हैं. विकासशील देशों में इसकी संख्या और भी ज्यादा कम है. विकासशील देशों में इसकी कमी होने का कारण कीमत ज्यादा होना भी है. इसी वजह से महिंद्रा और अन्य कंपनियों ने कम कीमत में वेंटिलेटर बनाने का फैसला किया है. दरअसल वेंटिलेटर में लगने वाले सामान कार कंपनियों के पास पहले से मौजूद हैं. ऐसे में इन कंपनियों ने उन कंपनियों से समझौता किया है जो वेंटिलेटर बनाती हैं.

भारत के पास कम हैं वेंटिलेटर?
अगर प्राइवेट मल्टिस्पेशियलिटी अस्पतालों का जिक्र छोड़ दें तो भारत के सरकारी अस्पतालों में अक्सर वेंटिलेटर की कमी देखने में आती है. कोरोना वायरस के फैलाव के लिहाज से अभी भारत दूसरी स्टेज में है. अगर देश तीसरी स्टेज यानी मास स्प्रेड की स्थिति में पहुंचता है तो बहुत अधिक संख्या में वेंटिलेटर्स की आवश्यकता पड़ेगी. हालांकि माना जा रहा है कि ऐसी स्थिति में प्राइवेट अस्पतालों की भी पूरी मदद ली जाएगी लेकिन उसके बावजूद भी संख्या कम पड़ सकती है. दरअसल तीसरी स्टेज में कोरोना मरीजों की संख्या कितनी तेजी से बढ़ जाएगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है, इसी वजह से सरकार चाहती है कि इसकी आपूर्ति पहले ही कर ली जाए.

कब से इस्तेमाल हो रहा है वेंटिलेटर
वेंटिलेटर का इतिहास शुरू होता है 1930 के दशक के आस-पास. तब इसे आयरन लंग का नाम दिया गया था. तब पोलियो की महामारी की वजह से दुनिया काफी जानें गई थीं. लेकिन तब इसमें बेहद कम खासियतें मौजूद थीं. वक्त के साथ वेंटिलेटर की खासियतें बढ़ती चली गईं.

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