Tuesday, March 31, 2020

प्रधानमंत्री को माफ़ी देकर ग़रीब तो इंसानियत से गद्दारी करने से रहा

आपने भले ही प्रज्ञा ठाकुर को ‘कभी दिल से माफ़ नहीं करने’ का बयान देने के बावजूद माफ़ कर दिया हो, उनके ख़िलाफ़ आपकी पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की हो, आपने उन्हें बहुत गर्व से अपना माननीय सांसद बनाये रखा हो, लेकिन याद रखिए प्रधानमंत्री जी, अपनी जान की बाज़ी लगाकर सड़कों पर भटक रहे लाखों ग़रीब-मज़दूर आपको कभी माफ़ नहीं कर पाएँगे। यदि दुआओं और बददुआओं का कोई असर होता है तो ऐसे लाखों लोगों और उनके परिजनों की बददुआएँ आपको भस्म करके रख देंगी। हालाँकि, आपका इतिहास बताता है कि आप बददुआओं से ख़ूब फलते-फूलते रहे हैं, लिहाज़ा आपके लिए तो सारा मौक़ा ख़ुशियाँ मनाने का है। फिर माफ़ी माँगने की नौटंकी करने की जहमत आपने क्यों उठायी? कभी मौक़ा लगे तो अपनी जीवनी में इस सवाल का ख़ुलासा ज़रूर कीजिएगा, ताकि आपके भगवा परिवार की आने वाली पीढ़ियाँ आपसे और प्रेरित हो सकें।

प्रधानमंत्री जी, आप सरासर झूठ बोलते हैं, ग़लतबयानी करते हैं कि ‘महज चार घंटे के नोटिस पर राष्ट्रीय लॉकडाउन’ का ऐलान करने के सिवाय आपके पास कोई चारा नहीं था। ऐसी सैकड़ों मिसालें हैं जब आपने ख़ूब आगा-पीछा सोचकर मुस्तैदी से ‘कड़े फ़ैसले’ लेकर दिखाये हैं। लिहाज़ा, ये आपकी सोची-समझी रणनीति है कि आपने कोरोना से निपटने में आकंठ ढिलाई दिखायी। दुविधा और संशय का भरपूर माहौल बनाये रखा। वुहान में 17 नवम्बर को जब नोवेल कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया तब चीन भी इसे पहचान नहीं सका। वहाँ हड़कम्प मचा 31 दिसम्बर को जब एक साथ दर्ज़नों लोग एक जैसी तकलीफ़ों के साथ अस्पताल पहुँचने लगे।

चीनी वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने हफ़्ते भर की जाँच से 7 जनवरी को पता लगा लिया है कि एक नये वायरस ने अवतार ले लिया है। अगले दिन इसे नोवेल कोरोना वायरस का नाम मिला और फ़ौरन इसकी जेनेटिक सिक्वेन्सिंग और इसके इंसान से इंसान में संक्रमित होने की जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को दी गयी। 11 जनवरी को WHO ने इसे वैश्विक महामारी (pandemic) का दर्ज़ा और COVID-19 (Corona Virus Disease, 2019) का नाम दिया। 18 जनवरी को भारत सरकार ने भी अपने हवाई अड्डों पर चीन से आने वालों की जाँच शुरू कर दी। 30 जनवरी को केरल में पहला कोरोना पॉज़िटिव सामने आया।

लेकिन तब तो आप अपनी सियासी तिकड़मों में इस क़दर मशग़ूल थे प्रधानमंत्री जी कि आपको दिल्ली चुनाव, दिल्ली दंगे, बजट, संसद, गोली मारो, शाहीनबाग़, मध्य प्रदेश की सौदेबाज़ी और असंख्य भाषणबाज़ी से ही फ़ुर्सत नहीं थी। पूरे फरवरी के बाद 4 मार्च को जैसे ही आपको दम लिया वैसे ही ऐलान कर दिया कि होली नहीं मनाऊँगा। अगले दिन आपके विदेश दौरे रद्द हुए। यानी, अब तक आप अच्छी तरह से कोरोना की भयावहता से वाकिफ़ हो चुके थे। इसके बावजूद आपने 24 मार्च की रात 8 बजे घोषणा की कि चार घंटे बाद से तीन हफ़्ते के लिए लॉकडाउन शुरू हो जाएगा।

इससे पहले 22 मार्च को आपने थाली-ताली वादन और शंखनाद का आयोजन करवाकर दुनिया तो अपने विलक्षण इवेंट मैनेज़र का पुनः अहसास करवा दिया था। इस वक़्त तक भी आपने कोरोना को अवैध रूप से आयात करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा। बकौल कैबिनेट सेक्रेट्री राजीव गौबा, आपने 18 जनवरी से 23 मार्च के दौरान विदेश से आने वाले 15 लाख लोगों को कोराना लाने का भरपूर मौक़ा दिया। देश आपकी ऐसी सूझबूझ का प्रदर्शन जम्मू-कश्मीर के विभाजन, 370 के ख़ात्मे, तीन तलाक़, बालाकोट, 1.76 लाख करोड़ के रिज़र्व कैपिटल फंड के इस्तेमाल सम्बन्धी फ़ैसलों में देख चुका है। सभी जानते हैं कि आपके तेज़ी से लिये गये कड़े फ़ैसले आनन-फ़ानन वाले नहीं होते। अन्दर ख़ाने हरेक बारीक़ तैयारी की जाती है।

प्रधानमंत्री जी, अब ये किसी से छिपा नहीं है कि नोटबन्दी और जीएसटी के बाद लॉकडॉउन के लिए भी आपने जो ‘एक क़दम आगे, दो क़दम पीछे’ वाली रणनीति बनायी है, उसमें हीलाहवाली के हालात अनचाहे नहीं, बल्कि जानबूझकर बनाये गये हैं। इसीलिए आपके फ़ैसलों में आपकी राजनीतिक लिप्साओं की भरपूर छाप दिखती है। हमेशा की तरह इस बार भी आप भावुकता का मुखौटा ओढ़कर अमीरों के फ़ायदे की लड़ाई में जुटे हुए हैं। इसीलिए आपकी ऐसी बेशर्मी देखकर हैरानी नहीं होती कि ‘आपके पास कोई चारा नहीं था’। कोई कैसे यक़ीन कर सकता है कि ज़मीन से जुड़ा एक दयालु राजनेता होने के बावजूद आपको ये अन्दाज़ा नहीं था कि लॉकडॉउन के हालात में लाखों प्रवासी और दिहाड़ी मज़दूर कैसे पेट भरेंगे, कहाँ जाएँगे? सुखद सिर्फ़ इतना है कि आपके भक्तों को ये तथ्य चौंकाते नहीं हैं।

प्रधानमंत्री जी, दरअसल आपको ये चिन्ता खाये जा रही थी कि कमबख़्त कोरोना, हिन्दू-मुसलमान क्यों नहीं कर रहा। आपकी तरह ग़रीबों की बातें बनाकर अमीरों के लिए काम क्यों नहीं कर रहा। आपकी ‘फूट डालो और राज करो’ वाली राजनीति को कोरोना ने नंगा कर दिया है। अब लोगों को भी पता चल चुका है कि आप ग़रीब का मुखौटा लगाकर पूंजीपतियों के हितों को साधने वाली आर्थिक नीतियाँ लागू करते हैं।

आपको चौंकाने वाले फ़ैसले लेने में मज़ा आता है। तभी तो आपने अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों और उनके राजनीतिक दलों की जेबें खाली करने के लिए ही नोटबन्दी की थी। आपके पास अपने शत्रुओं को पहचानकर उन्हें नोट-बदली से रोकने के लिए हर कड़े क़दम उठाने की ज़ोरदार तैयारी थी। तभी तो आपके अपने दल वाले लोगों के लिए नोट-बदली नेटवर्क खुलकर काम करता रहा। आपने मध्यम वर्ग को कंगाल बनाया तो निम्न वर्ग को दूसरों की कंगाली पर हँसना सिखाया। इसके लिए आपने ख़ुद ‘मिमिक्री’ करके परपीड़क हँसी वाली शैली में कितनी बार जनता को बताया कि जब हमने 8 बजे ऐलान किया तो लोगों की क्या दशा हुई!

प्रधानमंत्री जी, ये आपके व्यक्तित्व का ही करिश्मा था कि किसी को ताज्ज़ुब नहीं हुआ कि सबसे बड़े पद पर बैठा व्यक्ति कैसे आम लोगों की तकलीफ़ पर अट्हास कर सकता है। इसीलिए आपका कभी बाल तक बाँका नहीं हुआ। आपने मध्य वर्ग और निम्न वर्ग के बीच बैर-भाव को ही अपना ब्रह्मास्त्र बनाकर दिखा दिया। तभी तो आप लघु और मध्यम उद्योगों में तालाबन्दियाँ करवाकर लाखों-करोड़ों मज़दूरों को सड़कों पर ला पटकने में सफल हुए। उस वक़्त भी उन्हें ज़िन्दा रहने के लिए अपने उसी गाँव-घर लौटना पड़ा था, जहाँ से वो कुछ बेहतर ज़िन्दगी की तलाश में शहरों में आये थे। जबकि आपके पास पठानकोट था, राष्ट्रवाद था, बेजुबान जानवर जैसा पाकिस्तान था, जिस पर गरज-गरजकर आप लोगों में देशभक्ति का उन्माद भरते रहे। पुलवामा का सच, आपने आज तक सामने आने नहीं दिया।

प्रधानमंत्री जी, देश की मासूम जनता को आपने जीएसटी लागू करने के वक़्त भी कोई मामूली धोखा नहीं दिया। इसके लिए संसद में आधी रात को आज़ादी हासिल करने जैसा जश्न मनाया गया। जवाहर लाल नेहरू नहीं बन पाने को लेकर दिखायी गयी आपकी ऐसी कुंठा से देश को क्या मिला? ऐसी आर्थिक मन्दी जिसके आँकड़े छिपाने के लिए आपके जैसे ‘योद्धा’ को भी मज़बूर होना पड़ा। हालाँकि, वो मज़बूरी भी ऐसी नहीं थी जिसे लेकर आप कह पाते कि ‘आपके पास कोई चारा नहीं था’। मन्दी को भी आप कभी हिन्दू-मुसलमान नहीं बना सके। लेकिन इसके लिए आपने कभी किसी से माफ़ी नहीं माँगी, आँसू नहीं बहाये।

प्रधानमंत्री जी, आपकी कार्यशैली की वजह से ही आज सुप्रीम कोर्ट सरकार का घटक दल बनकर कहने लगा है कि कोरोना पर मोदी सरकार ने सन्तोषजनक काम किया है। ऐसा कि सरकार के आलोचक भी उसकी प्रशंसा कर रहे हैं। हालाँकि, इससे पहले आपकी आर्थिक दिव्य-दृष्टि को देखकर कई आर्थिक विशेषज्ञ और रिज़र्व बैंक के दो गर्वनरों ने इस्तीफा देकर चले जाने में ही अपनी ख़ैर समझी। MSME सेक्टर की दुर्दशा और असंगठित क्षेत्र की बेरोज़गारी आपके उन्हीं तेवरों की देन है। आपने हर साल दो करोड़ नौकरी का वादा किया, लेकिन वो मुंगेरी लाल के सपने साबित हुए। उल्टा हक़ीक़त में हर साल लोगों ने एक करोड़ नौकरियों की बलि चढ़ती चली गयी।

प्रधानमंत्री जी, शायद आप जानते नहीं कि ज्यों-ज्यों आपका ‘हार्ड वर्क’ वाला गुरूर बढ़ता गया त्यों-त्यों सुरसा राक्षसी के मुँह की तरह आपकी कुंठाएँ भी बेहिसाब बढ़ती रहीं। तभी तो आपने जनता पर एक नहीं निजी कुंठाओं से भरपूर अनेक फ़ैसले थोपे। इन पर राष्ट्रवाद, महान हिन्दू धर्म, देश-प्रेम वगैरह का मुलम्मा चढ़ा दिया। विरोध को दबाने के लिए आपने मीडिया हॉउसेज़ को ख़रीद डाला। बड़े मीडिया घरानों ने प्रादेशिक संस्करण शुरू करके केन्द्र सरकार से ख़ूब सरकारी मदद भी पायी। आपने मीडिया के हरेक पिरामिड पर खुलकर ताली और थाली बजाने वालों को बिठा दिया। बदले में मालिकों को मालामाल करने का भरोसा दिया। देखते ही देखते देश के मीडिया की डोर प्रधानमंत्री कार्यालय से घूमायी जाने लगी। यही नहीं, सोशल मीडिया के न्यूज़ ऑउटलेट्स में भी हर सुबह कम से कम दो-तीन हेडलाइन्स तय की जाने लगीं।

प्रधानमंत्री जी, हमें याद है आप कहा करते थे कि अगर देश के मीडिया से तालमेल कर लिया जाए तो मुल्क पर कोई भी 50 साल तक राज कर सकता है। हालाँकि, कभी ये बातें आपने काँग्रेस के परिप्रेक्ष्य में कही थीं, लेकिन आपने तो क्रूरता में काँग्रेस के 60 सालों के रिकार्ड को चन्द महीनों में ही ध्वस्त करके दिखा दिया। प्रशान्त किशोर जैसे रणनीतिकारों की ज़रूरत को मिटाकर आपने 2019 का चुनाव विशुद्ध रूप से TINA (There is no alternative) फ़ैक्टर पर लड़ा और विजयी हुए। इसके लिए ये मानते हुए कि आप नाक़ाबिल हैं, प्रचार यही किया गया कि दूसरा भी कोई क़ाबिल नहीं है। आप लगातार यही बेच रहे हैं प्रधानमंत्री जी, तभी तो आज भी आप यही कहते हैं कि कोई चारा नहीं था।

प्रधानमंत्री जी, कोई कैसे ये मान लेगा कि आप मुस्तैदी से फ़ैसले नहीं लेते। अपने चहेते कॉरपोरेट्स के हितों की ख़ातिर किसी सीमा तक जा सकते हैं। इसीलिए आपको जनता पर छपाक से तमाचे जड़ते वक़्त ज़रा सी भी दया नहीं आती। रिज़र्व बैंक को घुटनों पर बिठाकर आपने जो 1.76 लाख करोड़ रुपये ऐंठे थे, उससे जनता को लगा था कि शायद, ये रकम अर्थव्यवस्था को सम्भालने पर ख़र्च होगी, ताकि बाज़ार में माँग बढ़ सके, लेकिन आपने तो सारा पैसा अपने कॉरपोरेट दोस्तों की मदद में झोंक दिया। अब देश स्तब्ध और बेबस है कि आप सार्वजनिक उपक्रमों की खुली बोलियाँ लगवाकर अपने दोस्तों को निहाल करने में जुट गये हैं।

रेल, विमानन, पेट्रोलियम, टेलीकॉम क्षेत्र वाली सरकारी कम्पनियों को औने-पौने में ख़रीदने के लिए आपके यहाँ दोस्त आपके पास यूँ ही लाइन लगाये नहीं खड़े थे। आप भी मुग़ल बादशाहों की तरह कुछेक हज़ार करोड़ रुपये के ख़र्च की आड़ में लाखों करोड़ रुपये वाली कम्पनियों का सौदा कर रहे हैं। विदेश में भारत से बड़ी माली हैसियत वाले देशों को भी मदद की पेशकश करके आपको बादशाहत का अहसास कराने में बहुत सुकून मिलता है।

जम्मू-कश्मीर में अभी तक इंटरनेट सेवाएँ बहाल नहीं हुई हैं। वहाँ के दो करोड़ लोगों को आपने सात महीने से इसलिए लॉकडाउन में रखा है क्योंकि आपने इसे जम्मू-कश्मीर को फ़तह करने की तरह पेश किया। आपको पता है कि वहाँ की मेजॉरिटी पॉपुलेशन आपके फ़ैसले से सहमत नहीं है। लेकिन ऐसे असहमत लोगों पर फ़तह के ज़रिये आप अपने हिन्दू भक्तों को परपीड़ा का सुख देने में सफल हो जाते हैं। आप जानते हैं कि ऐसे फ़ैसलों से कश्मीर में भले ही बीजेपी को भला नहीं हो, लेकिन इससे आप ज़्यादातर मतान्ध हिन्दुओं को सालों-साल तक बरगला सकते हैं। क्योंकि आपने पीढ़ियों से उनमें इस ख़ास कुंठा को ठूँस-ठूँसकर भरा है कि उसे विशेष राज्य का दर्ज़ा सिर्फ़ इसलिए मिला क्योंकि वो मुस्लिम बहुल राज्य है और सरकार के क़ानून के बजाय शरियत से चलती थी।

प्रधानमंत्री जी, आपने पूरे कौशल से मुस्लिम कट्टरपन्थियों की तरह हिन्दू कट्टरपन्थियों की राजनीति को भी स्थायी बना दिया। कभी भारत के अधिकतर हिन्दुओं को इस बात का गर्व होता था कि वो किसी भी प्रगतिशील धर्म से ज़्यादा प्रगतिशील हैं। लेकिन आपने पुरातनवादी रूढियों, धर्म और ध्वजा को देश की राजनीति के केन्द्र में लाकर खड़ाकर दिया। ऐसे में आपको किसी तरह का भेदभाव नहीं करने वाली कोरोना महामारी कतई रास नहीं आ रही। आप समझ नहीं पा रहे हैं कि ऐसे में हिन्दू वोटों की एकजुटता के लिए क्या कदम उठाए जाएँ जिससे आपके कॉरपोरेट मित्रों का और वारा-न्यारा हो सके।

प्रधानमंत्री जी, आपकी विचित्र किस्म की लाचारी है कि कोरोना के रूप में प्रकृति का सन्देश है कि उसके लिए सब बराबर हैं। न कोई अमीर, ना ग़रीब। न हिन्दू, ना मुसलमान। इसीलिए ग़रीब आपकी प्राथमिकता में नहीं हो सकते, क्योंकि उन्हें मज़हब के आधार पर बाँटना असम्भव है। इसीलिए आप उनके प्राणों की एवज में कोरोना से लड़ने से ज़्यादा तरह-तरह का ढोंग कर रहे हैं। अब कोरोना चाहे तो आपको भले माफ़ कर दे, लेकिन ग़रीब-मज़दूर आपको कभी माफ़ नहीं कर पाएगा, क्योंकि आपको माफ़ करना इंसानियत के साथ धोखा होगा, गद्दारी होगी।

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