Friday, February 28, 2020

हनुमान जी के भक्तों से क्यों दूर रहते हैं शनिदेव, जानिए राम भक्त ने कैसे तोड़ा था सूर्य पुत्र का अहंकार

एक बार की बात है। सुबह-सुबह का समय था और हनुमान जी समुद्र के किनारे अपने अराध्य श्रीराम के ध्यान में डूबे थे। ठीक उसी समय उनसे कुछ दूर सूर्यपुत्र शनि भी विचरण कर रहे थे। शनिदेव को तब अपनी शक्ति का बहुत अहंकार था। उनकी वक्र दृष्टि गीली बालू पर जहां-जहां पड़ती, वहां का बालू सूख जाता। यह देश शनि का अहंकार और बढ़ जाता था।

ऐसे ही घूमते-घूमते उनकी नजर बालू पर बैठे हनुमान जी पर पड़ी। हनुमान जी को देखते हुए शनि देव के दिमाग में कुटिलता सूझी। उन्होंने उन्हें परेशान करने के लिए दूसरे ही वानर कहते हुए पुकारा और आखें खोलने के लिए कहा। शनिदेव ने कहा- ‘अरे वानर अपने आंख खोल, देख मैं अभी तैरी सुख-शांति नष्ट कर देता हूं। मैं सूर्यपुत्र हूं। इस ब्रह्मांड में कोई नहीं जो मेरा सामना कर सके।’

शनि को लगा कि उनकी बात सुनते ही हनुमान जी कांपने लगेंगे और उनके चरणों में गिर जाएंगे। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। हनुमान जी ने अपनी आंखे जरूर खोली और विनम्रता पूर्वक कहा, ‘महाराज आप कौन हैं और इस तपती बालू पर चलते हुए क्यों कष्ट उठा रहे हैं। मेरे लिए कोई सेवा हो तो बताएं।’

यह सुनकर शनिदेव का गुस्सा बढ़ गया। उन्होंने कहा- ‘अरे मूर्ख तू मुझे नहीं जानता। मैं शनि हूं। आज मैं तेरी राशि पर आ रहा हूं। साहस हो तो मुझे रोक ले।’ हनुमान जी ने फिर विनम्रतापूर्वक शनिदेव से कहा- ‘महाराज आप अपना पराक्रम कहीं और जाकर दिखाएं और मुझे श्रीराम की अराधना करने दें।’

अब तो शनिदेव के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने हनुमान जी का एक बांह पकड़ा और अपनी ओर खींचने लगे। हनुमान जी का भी अब धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने श्रीराम का नाम लेकर धीरे-धीरे अपनी पूंछ बढ़ानी शुरू कर दी। शनि क्रोध में थे और हनुमान को खींचने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि उनके साथ क्या होने जा रहा है।

शनिदेव को जब तक कुछ अहसास होता, हनुमान जी के पूंछ में शनिदेव फंस चुके थे। फिर क्या था, वे पूंछ की लपेट तोड़ने की कोशिश करने लगे लेकिन सफल नहीं हो पा रहे थे। इससे उनका गुस्सा और बढ़ गया और शनिदेव ने चीखकर कर कहा- ‘तुम क्या श्रीराम भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। देखो मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूं।’

श्रीराम के बारे में सुनकर हनुमान जी का भी क्रोध बढ़ गया। उन्होंने उछल-उछलकर समुद्र तट पर तेजी से दौड़ना शुरू कर दिया। उनकी लंबी पूंछ कहीं शिलाओं से टकराती, कहीं बालू पर घिसटती तो कहीं नुकीली शाखाओं वाले वृक्षों और कंटीली झाड़ियों से रगड़ खाती। इससे शनिदेव का हाल बेहाल होने लगा। उनके वस्त्र फट गए। सारे शरीर पर खरोंचे लग गई।

शनि ने मदद के लिए सभी देवताओं का आह्वान किया लेकिन उन्हें कहीं से मदद नहीं मिली। आखिरकार उन्होंने हनुमानजी से क्षमा की गुहार की। उन्होंने माफी मांगते हुए हनुमानजी से कहा- ‘मुझसे बड़ी गलती हो गई। मुझे अपने अहंकार का फल मिल गया। मुझे माफ कर दीजिए। भविष्य में मैं आपकी छाया से भी दूर रहूंगा।’

हनुमानजी रूके और कहा कि केवल मेरी छाया नहीं मेरे भक्तों की छाया से भी दूर रहना। असहाय शनि ने वचन दिया कि आपके भक्तों सहित उनसे भी दूर रहूंगा जो आपका नाम लेते हैं। इस प्रकार हनुमान जी ने शनि को छोड़ दिया।

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