Friday, November 29, 2019

जीडीपी के नए आंकड़े आ गए हैं, 5 ट्रिलियन इकॉनमी से और दूर चले गए हैं हम

जीडीपी के नए आंकड़े आ गए हैं. जुलाई-सितंबर तिमाही के आंकड़े. और नए आंकड़े हैं 4.5 प्रतिशत. इसका मतलब है कि जुलाई-सितंबर, 2019 की तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट बीते छह सालों में सबसे कम रही.

जीडीपी के आंकड़े तब आये हैं, जब देश की अर्थव्यवस्था एक बड़ा कीवर्ड बन चुकी है. जीडीपी. फुल फॉर्म ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट. शुद्ध हिंदी में कहें तो सकल घरेलू उत्पाद. पिछली बार यानी 31 अगस्त को जब अर्थव्यवस्था के आंकड़े आए, तो 5 का नंबर टीवी स्क्रीन पर चमक रहा था. तब अर्थशास्त्रियों ने दावा किया था कि असल संख्या 3 की है.

क्या होती है जीडीपी?

जीडीपी को हिंदी में कहते हैं सकल घरेलू उत्पाद. सकल का मतलब सभी. घरेलू माने घर संबंधी. यहां घर का आशय देश है. उत्पाद का मतलब है उत्पादन. प्रोडक्शन. कुल मिलाकर देश में हो रहा हर तरह का उत्पादन. उत्पादन कहां होता है? कारखानों में, खेतों में. कुछ साल पहले इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कंप्यूटर जैसी अलग-अलग सेवाओं यानी सर्विस सेक्टर को भी जोड़ दिया गया. इस तरह उत्पादन और सेवा क्षेत्र की तरक्की या गिरावट का जो आंकड़ा होता है, उसे जीडीपी कहते हैं.

कृषि का भी जीडीपी में बहुत बड़ा योगदान है.

और आसान तरीके से जानिए

मान लीजिए किसी खेत में एक पेड़ है. पेड़ है, तो बस छाया देता है. पेड़ आम का है, फल देता है तो किसान आम बेचकर पैसे कमाता है. ये पैसा किसान के खाते में जाता है, इसलिए पैसा देश का भी है. अब इस पेड़ को काट दिया जाता है. काटने के बाद पेड़ से जो लकड़ी निकलती है, उसका फर्नीचर बनता है. फर्नीचर का पैसा बनाने वाले के पास जाता है, यह पैसा भी देश का है. अब इस फर्नीचर को बेचने के लिए कोई दुकानवाला खरीदता है. दुकान वाले से कोई आम आदमी खरीद लेता है. आम आदमी पैसा खर्च करता है और दुकानदार के पास पैसा आ जाता है. खड़े पेड़ के कटने के बाद से कुर्सी-मेज बन जाती है, जिसे कोई खरीद लेता है. इसे खरीदने में पैसे खर्च होते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में जो पैसा आता है, वही जीडीपी है.

इसकी नपाई कैसे होती है?

सबसे पहले तय होता है बेस ईयर. यानी आधार वर्ष. एक आधार वर्ष में देश का जो उत्पादन था, वो इस साल की तुलना में कितना घटा-बढ़ा है? इस घटाव-बढ़ाव में का जो रेट होता है, उसे ही जीडीपी कहते हैं. गर उत्पादन बढ़ा है तो जीडीपी बढ़ी है. अगर तुलनात्मक रूप से उत्पादन घटा है तो जीडीपी में कमी आई है. इसे कॉन्स्ट्रैंट प्राइस कहते हैं, जिसके आधार पर जीडीपी तय की जाती है. यानी कि कीमत स्थिर रहती है. इसके अलावा एक और तरीका भी है. इसे करेंट प्राइस कहते हैं. चूंकि हर साल उत्पादन और अन्य चीजों की कीमतें घटती-बढ़ती रहती हैं, इसलिए इस तरीके को भी जीडीपी नापने के काम में लाया जाता है, जिसमें महंगाई दर भी शामिल होती है. हालांकि अपने देश में अभी करेंट प्राइस पर जीडीपी नहीं नापी जाती है. लेकिन इसकी मांग लंबे वक्त से हो रही है. केंद्र सरकार ने देश को जो पांच ट्रिलियन इकनॉमी बनाने की बात कही है, उसके लिए करेंट प्राइस को ही आधार बनाया गया है. जीडीपी का आंकलन देश की सीमाओं के अंदर होता है. यानी गणना उसी आंकड़े पर होगी, जिसका उत्पादन अपने देश में हुआ हो. इसमें सेवाएं भी शामिल हैं. मतलब बाहर से आयातित चीज़ों का जीडीपी में कोई बड़ा हाथ नहीं है.

GDP को नापने में बहुत सारे फैक्टर हैं. और देश में कितना काम हुआ है, इस पर जीडीपी का बहुत बड़ा आधार टिका हुआ है.

जीडीपी की गणना हर तिमाही होती है. जिम्मेदारी जिम्मेदारी मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिक्स ऐंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन के तहत आने वाले सेंट्रल स्टेटिक्स ऑफिस की. यानी हर तीन महीने में देखा जाता है कि देश का कुल उत्पादन पिछली तिमाही की तुलना में कितना कम या ज्यादा है. भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन अहम हिस्से हैं, जिनके आधार पर जीडीपी तय की जाती है. इसके लिए देश में जितना भी प्रोडक्शन होता है, जितना भी व्यक्तिगत उपभोग होता है, व्यवसाय में जितना निवेश होता है और सरकार देश के अंदर जितने पैसे खर्च करती है उसे जोड़ दिया जाता है. इसके अलावा कुल निर्यात (विदेश के लिए जो चीजें बेची गईं है) में से कुल आयात (विदेश से जो चीजें अपने देश के लिए मंगाई गई हैं) को घटा दिया जाता है. जो आंकड़ा सामने आता है, उसे भी ऊपर किए गए खर्च में जोड़ दिया जाता है. यही हमारे देश की जीडीपी है.

जीडीपी क्यों ज़रूरी है?

जीडीपी किसी देश के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा पैमाना है. अधिक जीडीपी का मतलब है कि देश की आर्थिक बढ़ोतरी हो रही है. अगर जीडीपी बढ़ती है तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था ज्यादा रोजगार पैदा कर रही है. इसका ये भी मतलब है कि लोगों का जीवन स्तर भी आर्थिक तौर पर समृद्ध हो रहा है. इससे ये भी पता चलता है कि कौन से क्षेत्र में विकास हो रहा है और कौन का क्षेत्र आर्थिक तौर पर पिछड़ रहा है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

आर्थिक मामलों के जानकार और इंडिया टुडे हिन्दी के संपादक अंशुमान तिवारी का कहना है, “इस बार की जीडीपी बीते 6 साल की सबसे कम है. ये इस बार 5 से भी नीचे गयी है. मतलब ये एक बड़ी आर्थिक आपदा है, क्योंकि लगातार जीडीपी गिरावट की ओर है. और अगर एक बार जीडीपी 5 परसेंट के नीचे गिर जाती है तो इसे फिर से ऊपर खींचना बहुत मुश्क़िल काम हो जाता है.”

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