Sunday, September 29, 2019

शारदीय नवरात्रि 2019: इस स्तुति से शुरू करें देवी की आराधना, सभी काम होंगे सफल

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कल से यानि आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि इस साल के शारदीय नवरात्रि शूरू हो रहे हैं। जिसके शुरू होते ही हर जगह मां का गुणगान शुरू हो जाता है। मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनो में जो भी भक्त मां की पूरे सच्चे दिल से आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। तो आइए नवरात्रि के इस खास मौके पर बताते है नवदुगा की एक ऐसी चमत्कारी व शक्तिशाली चालीसा के बारे में जिसके पाठ आपको दिलाएगा देवी दुर्गा की अपार कृपा। नवरात्र के नौ दिनों तक मां दुर्गा की सभी मनोरथ को पूरी करने वाली श्रीदुर्गा चालीसा का पाठ करने से शत्रुओं से मुक्ति, इच्छा पूर्ति सहित अनेक कामनाएं पूरी हो जाती है।

।।अथ श्री दुर्गा चालीसा।।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो अम्बे दुख हरनी।
निराकार है ज्योति तुम्हारी, तिहूं लोक फैली उजियारी।।

शशि ललाट मुख महा विशाला, नेत्र लाल भृकुटी विकराला।
रूप मातु को अधिक सुहावै, दरश करत जन अति सुख पावै।।
तुम संसार शक्ति मय कीना, पालन हेतु अन्न धन दीना।
अन्नपूरना हुई जग पाला, तुम ही आदि सुन्दरी बाला।।
प्रलयकाल सब नाशन हारी, तुम गौरी शिव शंकर प्यारी।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावै।।

रूप सरस्वती को तुम धारा, दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।
धरा रूप नरसिंह को अम्बा, परगट भई फाड़कर खम्बा।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो, हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं, श्री नारायण अंग समाहीं।।
क्षीरसिंधु में करत विलासा, दयासिंधु दीजै मन आसा।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी।।
मातंगी धूमावति माता, भुवनेश्वरि बगला सुख दाता।
श्री भैरव तारा जग तारिणी, क्षिन्न भाल भव दुख निवारिणी।।
केहरि वाहन सोह भवानी, लांगुर वीर चलत अगवानी।
कर में खप्पर खड्ग विराजै, जाको देख काल डर भाजै।।
सोहे अस्त्र और त्रिशूला, जाते उठत शत्रु हिय शूला।
नाग कोटि में तुम्हीं विराजत, तिहुं लोक में डंका बाजत।।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे, रक्तबीज शंखन संहारे।
महिषासुर नृप अति अभिमानी, जेहि अधिभार मही अकुलानी।।
रूप कराल काली को धारा, सेना सहित तुम तिहि संहारा।
परी गाढ़ संतन पर जब-जब, भई सहाय मात तुम तब-तब।।
अमरपुरी औरों सब लोका, तव महिमा सब रहे अशोका।
बाला में है ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा पूजें नर नारी।।

प्रेम भक्ति से जो जस गावैं, दुख दारिद्र निकट नहिं आवै।
ध्यावें जो नर मन लाई, जन्म मरण ताको छुटि जाई।।
जागी सुर मुनि कहत पुकारी, योग नहीं बिन शक्ति तुम्हारी।
शंकर अचारज तप कीनो, काम अरु क्रोध सब लीनो।।
निशदिन ध्यान धरो शंकर को, काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।
शक्ति रूप को मरम न पायो, शक्ति गई तब मन पछितायो।।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी, जय जय जय जगदम्ब भवानी।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा, दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।।
मोको मातु कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरे दुख मेरो।
आशा तृष्णा निपट सतावै, रिपु मूरख मोहि अति डरपावै।।
शत्रु नाश कीजै महारानी, सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।
करो कृपा हे मातु दयाला, ऋद्धि सिद्धि दे करहुं निहाला।।

जब लगि जियौं दया फल पाउं, तुम्हरो जस मैं सदा सनाउं।
दुर्गा चालीसा जो गावै, सब सुख भोग परम पद पावै।।
देवीदास शरण निज जानी, करहुं कृपा जगदम्ब भवानी।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो अम्बे दुख हरनी।।

दोहा शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे निशंक।।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लीजिए अंक।।

।।इति श्री दुर्गा चालीसा समाप्त।।

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